आत्महत्या की कोशिश के सवाल पर वह कहती है, यह तो सिर्फ मीडिया की ही देन है। मैंने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया। गुरुवार सुबह करीब ग्यारह बजे मुझे नाश्ते के लिए नीचे जाना था। चूंकि मुझे भूख ज्यादा लगी थी, रात में सोई भी नहीं थी। शायद इस वजह से मैंने दवा खा ली।
चांद मुझे देखने क्यों नहीं आए? यही सवाल मुझे अभी भी कचोट रहा है। अब तो उनके आने के बाद ही इससे पर्दा उठेगा, लेकिन भजनलाल परिवार हमें दूर करने में लगे हैं।
मुझे पहले से ही पता था कि चांद के पास धन दौलत नहीं है। उन्होंने सब कुछ अपने परिजनों के नाम कर दिया है। मैंने प्यार किया है चांद से न कि किसी पद या धन दौलत से।
चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद और अनुराधा बाली उर्फ फिज़ा की पहली मुलाकात का किस्सा भी कम रोचक नहीं है। बात करीब पांच साल पहले की है। तब चंद्रमोहन विधायक थे। 24 जुलाई को उनका मन जूस पीने का हुआ और वे जा पहुंचे जूस की एक दुकान पर।
वहां उनकी निगाह एक खूबसूरत चेहरे पर पड़ी। फिर क्या था, पहली ही नज़र में वे उसे दिल दे बैठे। अब समस्या थी कि उस लड़की का घर कैसे ढूंढ़ा जाए। कुछ दोस्तों ने दोस्ती का फर्ज अदा करते हुए लड़की का पता ढूंढ़ निकाला। अगले दिन चंद्रमोहन ने उसे फोन किया और अपना परिचय दिया। इत्तफाक से उस दिन अनुराधा का जन्मदिन था।
चंद्रमोहन ने उसे मिलने के लिए बुलाया तो न सिर्फ वह तैयार हो गई, बल्कि खुद उनके ऑफिस पहुंच गई। उसे देखकर एक बार तो चंद्रमोहन की बोलती बंद हो गई, मगर कुछ दिन बाद ही चंद्रमोहन ने अनुराधा के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया।
फिर क्या था, दोनों की मेल-मुलाकातों का दौर शुरू हो गया। एक दिन चंडीगढ़ के एक रेस्तरां में जब दोनों मिले तो चंद्रमोहन ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। लेकिन एक समस्या थी, चंद्रमोहन की पहली पत्नी। हालांकि चंद्रमोहन ने उससे अलगाव की काफी कोशिश की, लेकिन वह तैयार नहीं हुई तो अंतत: दोनों ने एक रास्ता निकाला। दोनों ने इस्लाम धर्म अपनाया। अब चंद्रमोहन बन गए चांद मोहम्मद और अनुराधा बाली हो गईं फिज़ा। इसके बाद दोनों ने मेरठ में निकाह कर लिया।