Monday, February 9, 2009

सांड से भी घूंघट

रीति-रिवाज व परंपराओं को निभाना एक अलग बात है, लेकिन अगर इन्हें निभाने में आस्था का भी समावेश हो जाए तो बात कुछ निराली हो जाती है। एक ऐसी ही निराली प्रथा राजस्थान के साथ लगते दक्षिण हरियाणा के अनेक गांवों में मुगल काल से चली आ रही है। महिलाएं सांड को देखकर घूंघट कर लेती हैं।
पितरों की पूजा में भी घूंघट
घूंघट करने की प्रथा यहीं तक सीमित नहीं है। अमावस्या के दिन जब महिलाएं पितरों की पूजा करती हैं, तो घूंघट करके ही करती हैं। इसके साथ ही वे जब भी परिवार की बुजुर्ग महिला से आशीर्वाद लेती हैं, तो घूंघट करना नहीं भूलतीं। वे घूंघट करके बुजुर्ग महिला के पैर दबाती हैं तथा आशीर्वाद लेती हैं। अगर बहू के मायके में किसी की मौत हो जाए तो वह ससुराल के लोगों के साथ घूंघट करके ही शोक व्यक्त करने जाती है।
घूंघट करने की यह प्रथा न केवल अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी महिलाओं में है, बल्कि पढ़ी-लिखी महिलाएं भी घूघंट करने से गुरेज नहीं करतीं। अगर अपने ससुराल के गांव में महिला अध्यापिका है, तो वह गांव में घूंघट करके ही चलती है और सांड को बुजुर्गो के समान ही सम्मान देती हैं। सांड को चेहरा दिखाना महिलाएं सामाजिक प्रथाओं के खिलाफ मानती हैं।
क्या कहती हैं महिलाएं
ढाणी धौलिया की बुजुर्ग महिला चंदो देवी का कहना है कि सांड को बुजुर्ग के समान माना जाता है। पंचायती सांड को तो गांव के राजा की पदवी दी गई है। ऐसे में जब बड़ों के आगे घूंघट (पर्दा) किया जाता है तो फिर सांड के सम्मान में कमी किसलिए। यह प्रथा अकबर के शासनकाल से चली आ रही है।

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