Wednesday, May 27, 2009

11 वर्षो बाद मिला हिस्से का नहरी पानी



गांव सिंहपुरा के ग्रामीणों व युवाओं के संघर्ष से यहां की बंजर पड़ी भूमि को 11 वर्षो बाद नहरी पानी नसीब हुआ है। यह पानी पंजाब के किसानों ने माइनर में बाधाएं डालकर रोका हुआ था। अदालत के आदेश बाद गांव वालों को उनका हक मिला है। पंजाब राज्य की सीमा से सटे हरियाणा के गांव सिंहपुरा की लगभग दो हजार एकड़ भूमि को पंजाब की कोटला ब्रांच नहर के माइनर से पानी पिछले 100 वर्षो से मिल रहा था। फरवरी 1998 में पंजाब के तत्कालीन सिंचाई मंत्री की सिफारिश पर सिंचाई विभाग मानसा के कार्यकारी अभियंता ने पूरे माइनर में आठ स्थानों पर 60-60 फुट लंबे व डेढ़ फुट ऊंचे ब्रेकर बनाने के आदेश दे दिए। इस संबंध में पंजाब के सिंचाई विभाग ने हरियाणा से कोई बात नहीं की। इसके बाद पंजाब के किसानों ने माइनर में यह ब्रेकर बना दिए जिससे गांव सिंहपुरा को उसके हक का पानी मिलना बंद हो गया। गांव की टेल पर नाममात्र पानी ही पहुंच रहा था। पानी की कमी के कारण गांव की दो हजार एकड़ भूमि बंजर बन गई। वर्ष 2002 में गांव में गठित बाबा ज्ञानदास युवा क्लब से किसानों ने इस समस्या के समाधान कराने की गुहार लगाई। क्लब के सदस्यों मास्टर जगदीश सिंहपुरा, गुरदीप सिंह, गुरजंट सिंह ढिल्लो व बलजीत सिंह आदि ने ग्राम पंचायत के सहयोग से यह मामला अनेक बार सिंचाई विभाग मानसा के अधिकारियों के समक्ष उठाया लेकिन विभाग ने ध्यान नहीं दिया। क्लब ने जनवरी 2006 में अदालत में एक याचिका दायर कर दी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने 15 सितंबर 2008 को एक कमेटी गठित करने का आदेश दिया जिसमें सिंचाई विभाग, पटियाला के अधीक्षण अभियंता, कार्यकारी अभियंता मानसा व कार्यकारी अभियंता रोड़ी शामिल थे। इस कमेटी ने 15 दिसंबर 2008 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में सिफारिश की गई कि माइनर के अंदर बनाए गए ब्रेकरों को हटाया जाना चाहिए। इसके बाद गांव के युवा क्लब के सदस्यों व किसानों ने सरपंच जसपाल की देखरेख में कोटला माइनर में बनाए गए ब्रेकरों को हटा दिया।

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