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कटड़ी के भ्रूण से बनाया क्लोन : एनडीआरआई के निदेशक डा। एके श्रीवास्तव ने जागरण से कहा, भैंस के क्लोन शिशु गरिमा का जन्म करा लेने के बाद अब हम एक साथ लाखों क्लोन शिशु यानी एक ही नस्ल के पशु तैयार कर सकते हैं। नस्ल एक होगी तो दुग्ध उत्पादन में भी बढ़ोतरी तय है। डा. श्रीवास्तव ने बताया कि यह क्लोन कटड़ी 6 फरवरी को पैदा हुई कटड़ी से भिन्न है। पहले क्लोन की जन्मदाता कोशिका एक नवजात मुरार्ह नस्ल की कटड़ी के कान से ली गई थी। यह क्लोन भैंस के गर्भ में कटड़ी भ्रूण से तैयार हुआ है। यह परंपरागत क्लोनिंग तकनीकी का संशोधित रूप है। इस तकनीक में पशु के अंडाशयों से डिंबाणु को निकालकर उसे परखनली में परिपक्व किया गया। बाद में उसे एक एंजाइम के साथ उपचारित किया गया। इसके बाद एक हैंड हेल्ड फाइन ब्लेड से नाभिक को निकाला गया। इसके बाद प्रदाता पशु के सोमेटिक कोशिकाओं को प्रजनित किया गया और नाभित रहित डिंबाणु कोशिकाओं व प्रदाता नाभिक को एलेक्ट्रोफ्यूज्ड करके प्रयोगशाला में विकसित किया गया। उसके बाद इस भ्रूण को कटड़ी के जन्म के लिए प्रत्यारोपण किया गया। इस क्लोन कटड़ी को आईसीयू में रखा गया है। चिकित्सक दल 24 घंटे इसके स्वास्थ्य पर नजर रखेगा। उन्होंने कहा कि हैंड गाइडिड क्लोनिंग के सकारात्मक परिणाम सामने आए तो भारत में श्रेष्ठ दुधारू पशुओं की संख्या तेजी से बढ़ेगी। क्लोन कटड़ी के जनक वैज्ञानिक एसके सिंगला, डा. आरएस माणिक, डा. एमएस चौहान, डा. पी पल्टा, डा. शिवप्रसाद, डा. आरएस शाह व डा. ए जार्ज व संस्थान के निदेशक डा. एके श्रीवास्तव व अन्य वैज्ञानिक खुशी से झूम उठे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. मंगला राय व परिषद के पशु विज्ञान के उप महानिदेशक डा. केएम बजरबरूआ ने इस उपलब्धि के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी है। बजरबरूआ ने कहा कि इस समय सर्वश्रेष्ठ सांडों की काफी कमी है। इस तकनीक से इस कमी को कम किया जा सकता है। प्रयोग में हिसार कृषि विश्वविद्यालय के डा. आरएस बिसला, डा. एससी आर्य, संस्थान के चिकित्सक डा. केपीएस तोमर, डा. सुभाष चंद्र व डा. प्रवीण कुमार ने भी योगदान दिया।
दूध की बहेंगीं नदियां! : वैसे तो भारत में इस समय करीब साढ़े अठारह करोड़ पशु हैं लेकिन इनमें दुधारू केवल साढ़े पांच करोड़ हैं। इन दुधारू पशुओं में वे भी शामिल हैं जो दिन भर में महज आधा लीटर दूध देते हैं। गरिमा इस सूरत में बदलाव ला सकती है। असल में क्लोन होने के कारण अब एक ही नस्ल की भैंस पैदा करना संभव हो सकेगा। इससे नस्लों की भिन्नता के कारण पशुओं में कम दूध संबंधी शिकायतों से बचा सकेगा।
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