Friday, February 13, 2009
हरियाणा को सैकड़ों करोड़ का फटका
महालेखाकार (लेखा परीक्षक) जगबंस सिंह ने कहा है कि वर्ष 2007-08 के दौरान किए गए आडिट में सामने आया है कि सरकार के कई विभागों ने नियम को ताक पर रखकर काम किया, जिससे हरियाणा सरकार को सैकड़ों करोड़ का नुकसान हुआ। बिजली खरीद में बरती गई अनियमितता से ही सरकार को एक सौ एक करोड़ रुपये का चूना लगा। सरकार ने बिजली खरीद के लिए हिमाचल प्रदेश के साथ गलत समझौता किया था जबकि मार्केट में उसकी अपेक्षा सस्ती दर की बिजली उपलब्ध थी। वह बुधवार को यहां एक पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि आडिट की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी गई है और सदस्यों को ही फैसला करना होगा कि क्या कदम उठाया जाना चाहिए? सरकार की कार्यप्रणाली का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि आडिट के दौरान देखने में आया कि विभागों के बजट बनाने में हेराफेरी करने के साथ गलत प्लानिंग, सरकारी दफ्तरों में तालमेल के अभाव, क्रियान्वयन की खामियों, अनाप शनाप खर्च से सरकार को सैकड़ों करोड़ की चपत लगी। उन्होंने हरियाणा सामुदायिक वन परियोजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन पर सवाल उठाए। महालेखाकार ने कहा कि रोजगार गारंटी योजना में भारी अनियमितता बरती गई। योजना के तहत गांव में रहने वाले लोगों को सौ दिन (गारंटी) रोजगार दिया जाना था लेकिन आडिट रिपोर्ट कहती है कि जितना काम हुआ उसकी अपेक्षा ज्यादातर भुगतान किए गए। सिरसा और महेंद्रगढ़ जिलों में स्कीम पर 2006-07 में 36.29 करोड़ रुपये खर्चे के तौर पर दिखाए गए हैं जबकि 2007-08 में यह रकम 25.21 करोड़ रुपये है। आडिट कहता है कि स्कीम की आड़ में कई लोगों को फर्जी भुगतान किए गए तो एक व्यक्ति को दो बार भुगतान किए गए। कुछ मामलों में हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लिए बगैर भुगतान कर दिए गए। उन्होंने कहा कि स्कीम में प्रावधान है कि सारा काम मैन पावर से कराया जाएगा लेकिन देखने में आया है कि काम को पूरा करने के लिए मशीन का इस्तेमाल करके कागज में फर्जी नाम से एंट्री कर दी गई। सिरसा और महेंद्रगढ़ में 450 तालाब खोदने में 8.37 करोड़ खर्च कर दिए गए पर उनमें पानी ही नहीं है। हाउसिंग बोर्ड की कार्यप्रणाली पर भी उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया जताई। महा लेखाकार का कहना था कि बोर्ड बगैर किसी योजना के काम कर रहा है। पंचकूला में निर्माण डिवीजन बनाने के नाम पर ही 5.68 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। इनकम टैक्स नहीं भरा जिसके चलते बोर्ड को 42.04 लाख रुपये जुर्माना देना पड़ा। लक्ष्य 26 हजार 304 घरों के निर्माण का था पर बनाए गए केवल 6 हजार 269 मकान। समाज के कमजोर तबके के लोगों के लिए घर बनाए जाने की स्कीम बोर्ड ने निकाली थी लेकिन बगैर किसी आधिकारिक सूचना के उसे निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए बदल दिया गया। जेल विभाग की खामियों पर भी उन्होंने सवालिया निशान लगाया। उन्होंने कहा कि जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं। उनका कहना है कि जरूरत के हिसाब से उन्हें दूसरी जेलों में शिफ्ट किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा कभी नहीं किया गया। जेलों में न तो वाच टावर हैं और न ही सुरक्षा व्यवस्था के पर्याप्त इंतजाम। जेल में खर्च हुए पैसे पर भी उन्होंने सवाल उठाए। उनका कहना था कि कैश बुक ठीक तरीके से मैनटेन नहीं की गई। पानीपत थर्मल पावर स्टेशन की यूनिट नंबर 1 और 3 की कार्यक्षमता पर भी उन्होंने सवालिया निशान लगाया। उन्होंने कहा कि ये दोनों यूनिट हरियाणा विद्युत नियामक आयोग और केंद्र सरकार के मानकों पर खरी नहीं उतर सकीं लेकिन इसके लिए थर्मल के अधिकारियों ने कुछ नहीं किया। एचएफसी की कार्यक्षमता पर भी आडिट ने सवाल उठाया। आडिट के अनुसार कारपोरेशन ने अधिकांश ऋण एनसीआर के क्षेत्र में बांटे जिससे बाकी हरियाणा में उद्योग विकसित नहीं हो सके। एचएफसी ने जो लोन दिए वह भी आडिट में गलत पाए गए हैं। हरबंस सिंह के अनुसार एचएसआईआईडीसी ने 5.81 करोड़ रुपये की रिकवरी के लिए कुछ नहीं किया तो एचईडीसी ने यात्रा भत्ते की मद में एक करोड़ रूपये यूं ही खर्च डाले। दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम ने ट्रांसफार्मर की खरीद में 14.81 करोड़ रुपये बेवजह खर्च डाले तो एचपीजीसी को 61.18 लाख का नुकसान केवल इस वजह से हुआ क्योंकि उसने कालोनी में रहने वाले स्टाफ से पानी का चार्ज नहीं लिया। राजस्व संग्रहण में भी जगबंस सिंह ने काफी खामियां निकाली। उन्होंने बताया कि हरियाणा विद्युत उत्पादन निगम लि. पंचकूला द्वारा हस्तांतरण विलेख का क्रियान्वयन न होने के कारण 4.20 करोड़ की एसडी की छूट का अनियिमत लाभ रहा। परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली पर उन्होंने बताया कि विद्यार्थियों के रियायती पास पर यात्री कर न लिए जाने के कारण सरकार को 1.63 करोड़ की हानि हुई तो 4601 परमिटों के धारकों से 1.06 करोड़ की परमिट फीस नहीं मांगी गई। 2005-06 तथा 06-07 के दौरान परिवहन सहकारी समितियों की बसों के संबंध में 93.11 लाख रुपये का यात्री कर विभाग ने मांगा ही नहीं। 353 शैक्षिक संस्थानों की बसों के संबंध में 45.41 लाख रुपये का यात्री कर भी नहीं वसूल किया गया। रोचक बात है कि विभाग ने यह पैसा कभी मांगा ही नहीं। वाणिज्यिक गतिविधियों की बजाए संस्थागत गतिविधियों के लिए दर को लागू करने के कारण अस्पताल के निर्माण के लिए खरीदी गई भूमि पर 93.05 लाख रुपये नहीं वसूल किए गए। पुलिस विभाग ने भी अनियमितता बरती जिसके चलते सरकार को 93 लाख की चपत लगी।
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