मंगलवार और बुधवार को प्रदेश में हुई बारिश ने किसानों की मेहनत को मिट्टी में मिला दिया। बारिश ने प्रदेश में ऐसे वक्त कहर बरपाया जब उनकी फसल तैयार होकर मंडियों में पहुँच चुकी है।
मंडियों में उस फसल की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नही है। खुले में पड़ी फसल कीबचने की कोई व्यवस्था नही है। आसमान से आफत बरसती रही और किसान बेबस होकर अपनी आखों के सामने अपने सोने को मिट्टी में मिलते हुए देखता रहा।
आसमान से कुदरत अपना कहर बरपा रही थी और किसान लाचार हो अपनी तबाही पर आंसू बहाने के आलावा कुछ नहीं कर पा रहा था। चुनावी मौसम में एक तरफ़ कुर्सी के लिए नेता जनता को सुनहरी सपने दिखा रहे थे और दूसरी तरफ़ किसानों के सपने उसकी आखों के आगे ही बिखर रहे थे।
यह कहानी बुधवार की ही नहीं है। हर साल किसानों की फसल का यही हाल होता है। कभी मौसम और कभी लालफीताशाही किसानों की मेहनत की कमाई को चाट जाते हैं। दशकों से यही सिलसिला चल रहा है। किसानों की भलाई के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। सुनहरी सपने दिखाए जाते हैं। लेकिन कभी खेतों में और कभी मंडियों में पहुँचते -पहुँचते उनकी मेहनत मिट्टी हो जाती है। किसान के हिस्से आता है बस केवल आंसू, बदहाली और गरीबी।
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