इनेलो -बीजेपी गठबंधन का हश्र देख आनन-फानन में हरियाणा जनहित कांग्रेस और बसपा ने मंगलवार को विधानसभा चुनाव की सीटों का बंटवारा कर लिया। जिस तरह से गठबंधन की घोषणा के बाद से सीटों के तालमेल का मामला अटका था, इस गठबंधन पर ही सवाल उठने लगे थे। हालाँकि दोनों दलों ने सीटों के बंटवारे की घोषणा कर यह जताने का प्रयास किया है की उनके यहाँ सब ठीक है लेकिन Barwala और बवानी खेडा पर जिस तरह टकराव की नौबत आई उसने करार की कामयाबी पर ही सवाल खड़े कर दिए। भिवानी, हिसार में एक भी रिज़र्व सीट बीएसपी के कोटे में नही गई। इसका नतीजा यह हुआ की बीएसपी का बेस कैडर ही समझौते से स्वयं को ठगा महसूस करने लगा।
अनुशासन के डंडे या पार्टी के प्रति वफादारी ने भले ही उन्हें अब चुप करा दिया हो और हजकां को इसमें जीत नज़र आ रही हो लेकिन चुनाव में इनकी निष्क्रियता जीत की राह को दूभर कर सकती है। हिसार और कुरुक्षेत्र में बीएसपी के कुछ सीनियर नेताओं के ख़िलाफ़ जो चिंगारी उठी थी, उसे भले ही अभी दबा दिया हो, लेकिन कमजोर सीटें लेने के कार्यकर्ताओं के आरोप गठबंधन के जोश को ठंडा कर ही रहे हैं। आरोप टो यह भी है की लोकसभा चुनाव में हजकां हिसार और भिवानी में बढ़त बनती दिखी और इसी के दम पर हजकां ने बीएसपी को इन जिलों में जमकर रूलाया और जान बूझकर उन्हें कमजोर सीटें दी।
बहरहाल दोनों दल सीट बंटवारे पर राजी हो गए हैं। इसके अलावा गठबंधन की 20 सितंबर को जींद में रैली करने की घोषणा की गई है, जिसकी मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती होंगी और अध्यक्षता हजकां के संरक्षक व पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल करेंगे। चंडीगढ़ में हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई और बसपा के प्रदेश प्रभारी मान सिंह मनहेड़ा ने प्रेस सम्मेलन करके चंडीगढ़ में सीटों के बंटवारे का एलान किया। गठबंधन के नियम के मुताबिक हजकां के हिस्से 50 और बसपा के हिस्से 40 सीटें आई हैं। दस आरक्षित सीटों पर बसपा के प्रत्याशी होंगे, जबकि सात आरक्षित सीटों पर हजकां के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे। इस अवसर पर बसपा प्रदेशाध्यक्ष प्रकाश भारती भी मौजूद थे। लेकिन उनकी अधिकांश समय चुप्पी यह बता रही थी की कार्यकर्ताओं का उन पर कितना दबाव है। कुलदीप और मनहेडा जब एक दूसरे को गलबहियां कर रहे थे , विरोधी भारती एक तरफ़ खड़े मुस्कुराने की कोशिश कर रहे थे। गठबंधन में दोनों दलों ने कुछ समझौते भी किए। लोकसभा चुनाव में करनाल संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली इंद्री सीट पर बसपा प्रत्याशी जीता था पर यह सीट हजकां को दे दी गई, क्योंकि यहां पर हजकां के युवा नेता पूर्व विधायक राकेश कांबोज को चुनाव लड़ना है। हिसार संसदीय सीट के तहत बरवाला विधानसभा सीट पर हजकां प्रत्याशी ने विजय हासिल की थी, यह सीट बसपा को दे दी गई। इस सीट पर बसपा बलवान सिंह जांगड़ा को प्रत्याशी बनाएगी।
आर्य के लिए यह चुनौती आसान नहीं। जांगडा को बरवाला सीट मिल गई पर एक ओर उन्हें विरोधियों के तीर तो सहने ही पड़ेंगे, वहीं नाराज हजकाई भी उनकी राह में बाधा पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।ऐसे में निश्चत तौर पर दोनों दलों के तालमेल पर असर पड़ेगा। वहीं बवानीखेड़ा में स्थिति इसके विपरीत है। सीट हजकां के खाते में हैं लेकिन बसपा का बेस कैडर वहां उपेक्षित महसूस कर रहा है। ऐसे में बसपा का वोट बैंक उन्हें मिलने से रहा। स्थिति उस समय गंभीर हो जाएगी यदि हजकां ऐसे प्रत्याशी को मैदान में उतार देती है जो कभी इस क्षेत्र में सक्रिय ही नहीं रहा और लोकसभा चुनाव में मैदान में तो जरुर आए लेकिन जमानत तक भी नहीं बचा पाए।वहीं बागियों का विरोध सो अलग। इसलिए सबसे पहले जरुरी था कि दोनों दल दिलों की गांठ खोलने का प्रयास करते और उसके बाद ही सीटों का बंटवारा किया जाता। लेकिन गठबंधन की घोषणा के महीनों बाद न तो दोनों दलों के वरिष्ठ नेताओं ने कोई संयुक्त जनसभा की और न ही संयुक्त कार्यकर्ता सम्मेलन। कार्यकर्ता आखिर तक गठबंधन टूटने की आशंका को पाले रहे। ऐसे में एकजुट होकर चुनाव लडऩे की उम्मीद करना ही बेमानी दिखता है।
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