कल्पना के शहर ने साइंस के क्षेत्र में नई उड़ान भरी है। अब गरिमा ने करनाल के NDRI (राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान) की गरिमा बढ़ा दी है। चार माह के भीतर ही यहां के वैज्ञानिकों ने विश्व की दूसरी क्लोन कटड़ी पैदा कराने में सफलता हासिल कर ली। मुर्राह नस्ल की यह कटड़ी पूरी तरह स्वस्थ है। इससे पशुओं में दूध की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी। एनडीआरआई के वैज्ञानिकों ने पहले भी एक क्लोन कटड़ी पैदा कराई थी। लेकिन, 6 फरवरी को जन्मे दुनिया की पहली क्लोन कटड़ी की हफ्ते भर के अंदर ही न्यूमोनिया के कारण मौत हो गई थी। इसके बाद संस्थान ने दो और क्लोन कटड़ी क्रमश: मई और जून में पैदा करने की घोषणा की थी, लेकिन मई में पैदा होने वाली क्लोन कटड़ी गर्भ में ही मर गई थी। दो बार विफल रहे वैज्ञानिकों ने इस बार भू्रण में सोमेटिक कोशिकाओं का प्रयोग करके क्लोन को विकसित किया। शनिवार दोपहर 11 बजे सीजेरियन आपरेशन शुरू हुआ। लगभग पौने घंटे बाद कटड़ी को सकुशल गर्भ से निकाला गया। जन्म के समय उसका वजन 43 किलो था। हालांकि कटड़ी के पैदा होने की तारीख 10 जून थी, लेकिन गर्भ में वजन ज्यादा होने की वजह से उसे चार दिन पहले आपरेशन करके स्वस्थ पैदा किया गया।
कटड़ी के भ्रूण से बनाया क्लोन : एनडीआरआई के निदेशक डा। एके श्रीवास्तव ने जागरण से कहा, भैंस के क्लोन शिशु गरिमा का जन्म करा लेने के बाद अब हम एक साथ लाखों क्लोन शिशु यानी एक ही नस्ल के पशु तैयार कर सकते हैं। नस्ल एक होगी तो दुग्ध उत्पादन में भी बढ़ोतरी तय है। डा. श्रीवास्तव ने बताया कि यह क्लोन कटड़ी 6 फरवरी को पैदा हुई कटड़ी से भिन्न है। पहले क्लोन की जन्मदाता कोशिका एक नवजात मुरार्ह नस्ल की कटड़ी के कान से ली गई थी। यह क्लोन भैंस के गर्भ में कटड़ी भ्रूण से तैयार हुआ है। यह परंपरागत क्लोनिंग तकनीकी का संशोधित रूप है। इस तकनीक में पशु के अंडाशयों से डिंबाणु को निकालकर उसे परखनली में परिपक्व किया गया। बाद में उसे एक एंजाइम के साथ उपचारित किया गया। इसके बाद एक हैंड हेल्ड फाइन ब्लेड से नाभिक को निकाला गया। इसके बाद प्रदाता पशु के सोमेटिक कोशिकाओं को प्रजनित किया गया और नाभित रहित डिंबाणु कोशिकाओं व प्रदाता नाभिक को एलेक्ट्रोफ्यूज्ड करके प्रयोगशाला में विकसित किया गया। उसके बाद इस भ्रूण को कटड़ी के जन्म के लिए प्रत्यारोपण किया गया। इस क्लोन कटड़ी को आईसीयू में रखा गया है। चिकित्सक दल 24 घंटे इसके स्वास्थ्य पर नजर रखेगा। उन्होंने कहा कि हैंड गाइडिड क्लोनिंग के सकारात्मक परिणाम सामने आए तो भारत में श्रेष्ठ दुधारू पशुओं की संख्या तेजी से बढ़ेगी। क्लोन कटड़ी के जनक वैज्ञानिक एसके सिंगला, डा. आरएस माणिक, डा. एमएस चौहान, डा. पी पल्टा, डा. शिवप्रसाद, डा. आरएस शाह व डा. ए जार्ज व संस्थान के निदेशक डा. एके श्रीवास्तव व अन्य वैज्ञानिक खुशी से झूम उठे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. मंगला राय व परिषद के पशु विज्ञान के उप महानिदेशक डा. केएम बजरबरूआ ने इस उपलब्धि के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी है। बजरबरूआ ने कहा कि इस समय सर्वश्रेष्ठ सांडों की काफी कमी है। इस तकनीक से इस कमी को कम किया जा सकता है। प्रयोग में हिसार कृषि विश्वविद्यालय के डा. आरएस बिसला, डा. एससी आर्य, संस्थान के चिकित्सक डा. केपीएस तोमर, डा. सुभाष चंद्र व डा. प्रवीण कुमार ने भी योगदान दिया।
दूध की बहेंगीं नदियां! : वैसे तो भारत में इस समय करीब साढ़े अठारह करोड़ पशु हैं लेकिन इनमें दुधारू केवल साढ़े पांच करोड़ हैं। इन दुधारू पशुओं में वे भी शामिल हैं जो दिन भर में महज आधा लीटर दूध देते हैं। गरिमा इस सूरत में बदलाव ला सकती है। असल में क्लोन होने के कारण अब एक ही नस्ल की भैंस पैदा करना संभव हो सकेगा। इससे नस्लों की भिन्नता के कारण पशुओं में कम दूध संबंधी शिकायतों से बचा सकेगा।
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