प्रदेश में केबल आपरेटरों के बहाने निजी चैनलों पर सरकार ने शिकंजा कस लिया है। अब प्रदेश में केबल का व्यवसाय चलाने के लिए आपरेटरों को सरकार से लाइसेंस लेना होगा और एक शहर में मात्र एक ही आपरेटर को लाइसेंस मिलेगा। इसके लिए हालांकि बहाना मोटी लाइसेंस फीस का किया जा रहा है लेकिन इंडस्ट्री से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इससे निजी चैनलों की चाबी सरकार के हाथ आ जाएगी और उन पर इन आपरेटरों के माध्यम से नियंत्रण लग जाएगा।
इसके अलावा केबल आपरेटर इसे अव्यावहारिक भी बता रहे हैं और साथ ही ट्राई के नियमों के उल्लंघन का आरोप भी ला रहे हैं। दूरदर्शन व दूरसंचार पर नियंत्रण सिर्फ ट्राई का ही होता है और सभी प्रसारणकर्ताओं को ट्राई की हिदायतों का पालन करना होता है, लेकिन केबल आपरेटर सरकार के इस बिल को ट्राई के अधिकार क्षेत्र में उल्लंघन बता रहे हैं। सरकार ने फैसला लिया है केबल आपरेटर के लिए लाइसेंस खुली बोली से दिए जाएंगे और जो भी ज्यादा बोली देगा वह इसका लाइसेंस हासिल कर पाएगा लेकिन जो ज्यादा बोली देगा, वह अपने लाभ के लिए दरें भी बढ़ाएगा, पर दरें तो TRAI ने पहले ही तय कर रखी हैं और केबल आपरेटर उसी के हिसाब से चैनलों के पैकेज के अनुरूप उपभोक्ता से दाम वसूल सकता है। अगर सरकार उन्हें ज्यादा दाम वसूलने की इजाजत देती है तो इससे ट्राई के नियमों का उल्लंघन होगा।जाहिर तोर प्रदेश सरकार के इस बिल ने केबल संचालकों में बैचेनी पैदा कर दी है। ऐसे में यदि बिना केबल का व्यवसाय किए कोई व्यक्ति बोली में सफल हो जाता है तो न सिर्फ व्यवसाय कर रहे लोगों का धंधा चौपट होने से उन्हें करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ेगा, बल्कि उपभोक्ताओं को भी नया नेटवर्क स्थापित होने तक केबल देखने से वंचित होना पड़ेगा। हालांकि इस संबंध में जींद व कुरूक्षेत्र के दो केबल संचालकों ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर दी गई है और 26 नवम्बर को न्यायालय द्वारा इस संबंध में राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी कर दिया है। अब न सिर्फ शहरों में बल्कि राज्य के लगभग हर गांव यहां तक की ढाणियों में भी केबल पहुंच चुका है और इस व्यवसाय से लगभग 30 हजार लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है। किसी भी केबल संचालक को केबल लगाने से पूर्व केन्द्रीय केबल नेटवर्क अधिनियम 1995 के तहत लाइसेंस लेना होता है जो संबंधित क्षेत्र के मुख्य डाकघर से निर्धारित शुल्क देकर ले लिया जाता है। जिसका हर वर्ष नवीनीकरण कराना होता है। हालांकि व्यवसाय को नियंत्रित करने के लिए इसे ट्राई के अधीन किया गया है। केबल व्यवसाय के फैलने व पे-चैनलों के बढ़ते बाजार से ट्राई ने भी समय-समय पर केबल के लिए नियम निर्धारित किए हैं ताकि केबल संचालक उपभोक्ताओं पर मनमर्जी न चला सकें। किसी भी छोटे से शहर में ही केबल का व्यवसाय करने के लिए न सिर्फ लगभग एक करोड़ रुपये की राशि निवेश करनी पड़ती है, बल्कि पूरे शहर में कनेक्शन करने के लिए छह माह का समय भी लगाना पड़ता है। वर्तमान समय में एक ही शहर में एक ही केबल नेटवर्क से अनेक सब-आपरेटर नेटवर्क संचालक को निश्चित कमीशन में लाइन लेकर अलग-अलग हिस्सों में यह व्यवसाय कर रहे हैं। इतना ही नहीं किसी भी शहर में स्थापित केबल नेटवर्क से आसपास के लगभग 40 किलोमीटर दूरी तक के गांवों में तार के जरिये हर गांव के दो-चार बेरोजगार युवक यह व्यवसाय कर रहे हैं।वहीं सभी राजनीतिक दल इस संवेदनशील मुद्दे पर अभी चुप्पी साधे हैं लेकिन उन्हें भी यह आशंका है कि केबल आपरेटरों के जरिए सरकार निजी चैनलों के प्रसारण पर लगाम लगा सकती है और कोई भी सरकार से लाइसेंस प्राप्त आपरेटर सरकार के सामने सिर झुकाते नजर आएंगे। ऐसे में मीडिया पर भी लगाम लग सकती है।
2 comments:
ईससे अब सरकार को कई फायदे होंगे। ज्यादा पैसा मिलेगा। और सबसे बढीया निजी चैनलों पर कंट्रोल आ जाएगा और फिर अपने बारे मे दिन भर बताएंगे।
"कंग्रेस सबसे बढीया पार्टी"
एड मे भी यही आएगा और बिजेपी को तो पर्चार भी नही करने देंगे :)))))
it is really shocking.
Now cogress is trying to control the media, It is a very serious issue, I can't think why any political party is not taking up this issue.
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